RBI ने अक्टूबर 2025 की बैठक में रेपो दर 5.5% पर स्थिर रखी, अमेरिकी टैरिफ और जीएसटी सुधार प्रभावी

RBI ने अक्टूबर 2025 की बैठक में रेपो दर 5.5% पर स्थिर रखी, अमेरिकी टैरिफ और जीएसटी सुधार प्रभावी
1 अक्तूबर 2025 Sanjana Sharma

जब संचालक संजय मल्होत्रा, गवर्नर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 1 अक्टूबर 2025 को मुंबई में आयोजित मौद्रिक नीति समिति (MPC) बैठकमुंबई में रेपो दर 5.50% पर स्थिर रखने का फैसला किया, तो यह दो लगातार माह में दर में कोई बदलाव न करने का संकेत है। यह निर्णय विभिन्न घरेलू-विदेशी कारकों—जैसे नई जीएसटी सुधार, अमेरिकी टैरिफ और वैश्विक मौसमी सन्दर्भ—के संतुलन को दर्शाता है।

पृष्ठभूमि: 2025 की मौद्रिक नीति यात्रा

फरवरी 2025 से शुरू हुए RBI के तीव्र easing कदमों ने कुल 100 बेसिस पॉइंट की कटौती की, जिससे रेपो दर अगस्त 2022 के बाद सबसे निचले 5.50% स्तर पर पहुँची। प्रमुख कटौतियों में जून 2025 में 50 बेसिस पॉइंट की अनपेक्षित गिरावट शामिल थी, जो बाजार की 25 बेसिस पॉइंट की उम्मीद से दोगुनी थी। इस दौरान RBI ने बैंक ऑफ़ बारोडा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सभाविस को भी अपने नीतिगत संवाद में शामिल किया था।

अक्टूबर 2025 की MPC बैठक के मुख्य बिंदु

  • रेपो दर 5.50% पर स्थिर – दो महीने लगातार कोई बदलाव नहीं।
  • बैंक दर 5.75%, MSF 5.75%, SDF 5.25%, LAF 5.25% सभी अपरिवर्तित।
  • विकास पूर्वानुमान: FY2025/26 के लिए 6.5%, FY2026/27 के लिए 6.6% की GDP वृद्धि अनुमान।
  • मुद्रास्फीति लक्ष्य: FY2026 में 3.1% (पिछले 3.7% से नीचे) – CPI लक्ष्य सीमा 2‑6% के भीतर।
  • न्युट्रल नीति स्थिती जारी, जिसका अर्थ है भविष्य में दर‑ऊपर या नीचे दोनों दिशा में बदलाव किए जा सकते हैं।

बैठक के बाद प्रकाशित प्रेस कॉन्फ़्रेंस में गवर्नर मल्होत्रा ने कहा, “हमें अभी भी बाहरी जोखिमों की निकटता से निगरानी करनी होगी, विशेषकर व्यापार‑टैरिफ और वैश्विक आपूर्ति‑संधियों को।”

अमेरिकी टैरिफ और जीएसटी सुधार का प्रभाव

अक्टूबर में, संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारतीय वस्तुओं पर 25% अतिरिक्त ड्यूटी और 50% शिपिंग शुल्क घोषणा की। इस कदम ने भारतीय निर्यातकों में चिंता उत्पन्न कर दी, और RBI ने इसे मौद्रिक नीति पर संभावित दबाव के रूप में जोड़ा। वहीं, हाल ही में लागू हुए जीएसटी सुधार ने दैनिक उपयोग की वस्तुओं पर कर में कमी लाई, जिससे उपभोक्ता‑मूल्य सूचकांक पर गिरावट का दबाव आया। हालांकि, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि कर‑छूट से उपभोक्ता मांग में बढ़ोतरी होगी, जो अंततः मुद्रास्फीति को थोड़ा‑बहुत वापस धकेल सकता है।

बाज़ार की प्रतिक्रियाएँ और विशेषज्ञों की राय

बैठक से पहले, SBI के रिसर्च टीम ने 25 बेसिस पॉइंट की और कटौती को “सबसे अच्छा विकल्प” कहा था, परन्तु कई बाजार प्रतिभागियों ने एक ‘स्नैप‑इट’ की उम्मीद जताई। बैंक ऑफ़ बारोडा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सभाविस ने कहा, "इन परिस्थितियों में हम स्थिति‑स्थिरता की आशा करते हैं। निर्यातकों के लिए विशेष पैकेज और टैरिफ‑राहत की संभावना के बिना, दर‑कटौती जल्द नहीं होगी।"

दूसरी ओर, कुछ विदेशी निवेशकों ने RBI को ‘सावधानीपूर्वक जोखिम‑संतुलन’ अपनाते देखने की इच्छा जताई, क्योंकि अमेरिकी टैरिफ और संभावित मुद्रास्फीति दाब दोनों ही अस्थिरता को बढ़ा सकते हैं।

भविष्य की संभावनाएँ और आगे की नीति दिशाएँ

आगामी तिमाही में RBI को दो प्रमुख संकेतकों की ओर देखते रहना पड़ेगा: (i) निर्यात‑टैरिफ से जुड़ी बाहरी दबाव, और (ii) भारत के मानसून‑संबंधी कृषि उत्पादन की सफलता। यदि मानसून में अभाव नहीं रहता, तो सप्लाई‑साइड इम्प्रूवमेंट से मुद्रास्फीति लक्ष्य में और कमी आ सकती है, जिससे दर‑कटौती की गुंजाइश खुल सकती है। दूसरी ओर, यदि अमेरिकी टैरिफ को लेकर विश्व व्यापार‑संघर्ष तेज होता है, तो RBI को आर्थिक स्थिरता के लिये नीति‑न्यूट्रल ही बनाए रखना पड़ सकता है।

संक्षेप में, RBI ने वर्तमान में ‘संतुलन’ को प्राथमिकता दी है—घर‑आधारित लोन‑इएमआई को राहत देना जारी रखते हुए, साथ ही विदेशी ट्रेड‑शॉक से बचाव के लिये तैयार रहना। इस रणनीति का दीर्घकालिक प्रभाव अभी स्पष्ट नहीं है, परन्तु यह दर्शाता है कि भारतीय मौद्रिक प्रबंधन अब ‘वहिम‑विचार’ के साथ आगे बढ़ रहा है।

Frequently Asked Questions

Frequently Asked Questions

क्या रेपो दर में स्थिरता से लोन इन्श्योरेंस पर असर पड़ेगा?

स्थिर रेपो दर का मतलब है कि बैंकों के फंडिंग कॉस्ट में कोई अचानक बदलाव नहीं हुआ, इसलिए मौजूदा होम और कार लोन के इस्टेमेटेड मासिक किस्तें (EMI) वैसी ही रहेंगी। नई कटौती न मिलने से नई लोन‑डिमांड पर थोड़ा‑बहुत दबाव पड़ सकता है, परंतु मौजूदा ग्राहकों को अभी भी कम ब्याज दरों का फायदा मिलेगा।

अमेरिकी टैरिफ का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रत्यक्ष प्रभाव है?

डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा घोषित 25% आयात ड्यूटी भारतीय वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि कर सकती है, जिससे निर्यात‑आधारित कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मकता घटेगी। यह दबाव RBI को मौद्रिक नीति में सतर्क रखेगा, क्योंकि निर्यात घटने से विदेशी मुद्रा आवक में कमी आ सकती है, जो वैदेशिक मुद्रा बाजार को अस्थिर कर सकती है।

RBI ने GDP वृद्धि अनुमान क्यों स्थिर रखा?

वित्तीय वर्ष 2025/26 में 6.5% और अगले साल 6.6% का अनुमान इस कारण दिया गया है क्योंकि कल्याणकारी खर्च, आयात‑निर्यात संतुलन और उपभोक्ता‑सहयोगी खर्च की अपेक्षित गति स्थिर देखी गई। साथ ही, नई GST कटौतियों से निवेश और खपत दोनों को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है।

भविष्य में RBI रेपो दर को घटाने की संभावना कितनी है?

न्युट्रल नीति स्थिती का अर्थ है कि RBI आगे के डेटा पर निर्भर रहेगी। अगर मानसून‑सत्र में कृषि उत्पादन बेहतर रहा, या अगर महँगाई लक्ष्य 4% के भीतर दृढ़ रही, तो दर‑कटौती की संभावना बढ़ सकती है। लेकिन अगर अमेरिकी टैरिफ‑शेयर बाजार में अस्थिरता बढ़ती रही, तो RBI सहजता से दर‑स्थिरता को प्राथमिकता दे सकता है।

संचालक संजय मल्होत्रा ने बैठक के बाद कौन-सी प्रमुख बात कही?

गवर्नर मल्होत्रा ने पुष्टि की कि RBI "बाहरी जोखिमों, विशेषकर व्यापार‑टैरिफ और वैश्विक आपूर्ति‑धारा को बारीकी से मॉनिटर कर रहा है" और कहा कि "जबतक इन अस्थिरताओं में स्पष्ट सुधार नहीं होता, हम नीति‑स्थिति‑स्थिरता को बनाए रखेंगे"।

RBI रेपो दर संजय मल्होत्रा अमेरिकी टैरिफ जीएसटी सुधार
Sanjana Sharma

द्वारा Sanjana Sharma

9 टिप्पणि

  • Image placeholder

    Sandhya Mohan

    अक्तूबर 1, 2025 AT 22:19

    RBI ने रेपो दर को स्थिर रख कर आर्थिक संतुलन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। दो महीने लगातार नीति में कोई परिवर्तन न होना दर्शाता है कि केंद्रीय बैंक बाहरी जोखिमों को सावधानी से देख रहा है। इस निर्णय से बाजार में अनिश्चितता घटती है और निवेशकों को थोड़ा भरोसा मिलता है। फिर भी, टैरिफ की नई चुनौतियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, इसलिए नीति की लचीलापन बनाये रखना आवश्यक है। अंत में, यह कहा जा सकता है कि स्थिरता के साथ विकास की राह पर चलना ही वर्तमान में सबसे समझदार रणनीति है।

  • Image placeholder

    Prakash Dwivedi

    अक्तूबर 13, 2025 AT 12:05

    अक्टूबर की बैठक में दर स्थिर रखना दर्शाता है कि मौद्रिक नीति में झटका देने की जरूरत नहीं रही। अमेरिकी टैरिफ का संभावित प्रभाव अभी भी अनिश्चित है, इसलिए RBI ने सावधानी बरती है। जीएसटी सुधार से उपभोक्ता मूल्य पर हल्का दबाव आया है, जिससे महंगाई लक्ष्य में मदद मिली होगी। यह संतुलन बनी रहने पर आर्थिक माहौल स्थिर रहने की उम्मीद है।

  • Image placeholder

    Rajbir Singh

    अक्तूबर 25, 2025 AT 01:52

    दो महीने लगातार दर में बदलाव नहीं होने का मतलब है कि RBI को अभी तक पर्याप्त तनाव नहीं दिख रहा है। विदेशी टैरिफ और सप्लाई‑साइड स्थिति को देखते हुए यह एक समझदार चोइस है। हालांकि, निर्यातकों को दीर्घकालिक मदद के लिए अतिरिक्त पैकेज की जरूरत होगी। नीति‑न्यूट्रल रहने से बाजार में अनावश्यक उछाल नहीं होगा।

  • Image placeholder

    Swetha Brungi

    अक्तूबर 27, 2025 AT 09:25

    बिल्कुल, निर्यातकों के लिए टैरिफ राहत एक प्रमुख मुद्दा बन गया है, इसलिए RBI का संयमित रवैया सराहनीय है। घरेलू उपभोक्ता को भी GST सुधार से कुछ राहत मिल रही है, जिससे माँग थोड़ी स्थिर रहती है। यदि मानसून की स्थितियों भी अनुकूल रहें तो सप्लाई‑साइड दबाव कम हो सकता है। इस परिस्थितियों में नीति‑स्थिरता को जारी रखकर RBI आर्थिक समायोजन को आसान बना सकता है। अंत में, बाजार को स्पष्ट संकेत मिलने से निवेशक भरोसा बनेंगे।

  • Image placeholder

    vikash kumar

    नवंबर 7, 2025 AT 23:12

    यह नीति निरंतरता का प्रतीक है, लेकिन वास्तविक प्रभाव केवल डेटा के पश्चात ही समझ में आएगा।

  • Image placeholder

    Anurag Narayan Rai

    नवंबर 10, 2025 AT 06:45

    RBI की निरंतर नीति‑स्थिरता ने मनी मार्केट में तरलता को एक स्थिर स्तर पर रखा है।
    रेपो दर 5.5% पर रहे जाने से बैंक के फंडिंग कॉस्ट में कोई अचानक उछाल नहीं आया, जिससे वे लोन देने में सहज महसूस करते हैं।
    अमेरिकी टैरिफ की घोषणा ने निर्यात‑उद्योग को झटका दिया, परंतु जीएसटी कटौतियों ने घरेलू मांग को कुछ हद तक समर्थन दिया।
    इस दोहरी प्रभाव को देखते हुए नीति‑निर्माताओं को दोनों पक्षों का संतुलन बनाये रखना आवश्यक है।
    पिछले कई महीनों में RBI ने कुल 100 बेसिस पॉइंट की कटौती की थी, जो आर्थिक रिकवरी की दिशा में एक सकारात्मक संकेत था।
    हालांकि, अब दर को और नीचे ले जाना आर्थिक अस्थिरता को बढ़ा सकता है, विशेषकर यदि वैश्विक बाजार में अनिश्चितता बनी रहे।
    मौसमी कारकों जैसे मानसून की स्थिति को भी गिनना जरूरी है, क्योंकि कृषि उत्पादन सीधा उपभोग और निर्यात को प्रभावित करता है।
    यदि मानसून समय पर और पर्याप्त मात्रा में आया, तो कृषि आपूर्ति में सुधार से महंगाई को नीचे धकेलने की संभावना बढ़ेगी।
    इसके विपरीत, यदि टैरिफ बढ़े और विदेशी निवेश में गिरावट आई, तो मौद्रिक नीति को फिर से कसना पड़ेगा।
    वर्तमान में RBI ने निरपेक्ष नीति‑स्थिति को चुना है, जो दोनों संभावनाओं के लिए खुला है।
    इस लचीलापन को दर्शाने के लिए केंद्रीय बैंक ने स्पष्ट रूप से कहा कि डेटा के आधार पर ही निर्णय लिये जाएंगे।
    बाजार के प्रतिभागियों को इस संकेत का फायदा उठाकर दीर्घकालिक निवेश की योजना बनानी चाहिए।
    वास्तविक लाभ तभी मिलेगा जब बैंक अपनी लोन‑आधारित एंजिन को स्थिर रख सकें और उपभोक्ता विश्वास बना रहे।
    इस बीच, सरकार का GST सुधार उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत को घटाने में मदद करेगा, जिससे उपभोक्‍ता‑प्रधान ब्‍जट अधिक संतुलित रहेगा।
    अंततः, RBI की यह रणनीति अगर ठीक से लागू हुई, तो आर्थिक विकास को स्थिरता के साथ बढ़ावा मिलेगा और अधिशेष जोखिमों को सीमित किया जा सकेगा।

  • Image placeholder

    Rashi Jaiswal

    नवंबर 21, 2025 AT 20:32

    बाजार में तुरंत बदलाव आया।

  • Image placeholder

    Maneesh Rajput Thakur

    दिसंबर 3, 2025 AT 10:19

    अक्टूबर की नीति स्थिरता का अर्थ यह नहीं है कि RBI ने सभी समस्याओं को हल कर दिया है; बल्कि यह संकेत है कि मौद्रिक नीति अभी भी डेटा‑उन्मुख है। टैरिफ की नई घोषणा से निर्यात‑उद्योग पर दबाव बना रहेगा, इसलिए निर्यातकों को अतिरिक्त प्रोत्साहन की आवश्यकता होगी। GST सुधार के कारण घरेलू इन्फ्लेशन में कुछ राहत मिली है, लेकिन यह अस्थायी हो सकता है। यदि अगले तिमाही में कृषि उत्पादन में सुधार नहीं हुआ, तो RBI को पुनः tightening पर विचार करना पड़ सकता है। इस प्रकार, नीति‑निर्णय का सफ़र अभी भी जारी है।

  • Image placeholder

    ONE AGRI

    दिसंबर 5, 2025 AT 17:52

    देश की स्वाभाविक अधिकारों की रक्षा में हमें विदेशियों के टैरिफ हमलों को नहीं भुलना चाहिए। हमारे किसान और उद्योगी इस दबाव को सहन नहीं करेंगे, इसलिए सरकार को कड़ी प्रतिक्रिया देनी चाहिए। यह हमारे आर्थिक स्वाधीनता के मूल सिद्धांत को समर्थन देगा।

एक टिप्पणी लिखें