प्रोजेक्ट चीटा: केन्या से नई शेरभेड़ें, भारत में 2025‑2026 तक के बैच की संभावनाएं

प्रोजेक्ट चीटा: केन्या से नई शेरभेड़ें, भारत में 2025‑2026 तक के बैच की संभावनाएं
27 सितंबर 2025 Sanjana Sharma

भारत में Project Cheetah अब केवल दो अफ्रीकी देशों तक सीमित नहीं रहा। केंद्र ने केन्या से शेरभेड़ें लाने के संभावित चरण को औपचारिक बातचीत की मुद्रा में बदल दिया है। यह कदम न केवल जीन पूल को विविधता देगा, बल्कि कूनो राष्ट्रीय उद्यान जैसे चयनित क्षेत्रों में स्थायी जनसंख्या स्थापित करने की संभावना बढ़ाएगा।

प्रोजेक्ट चीटा का विकास और वर्तमान स्थिति

2019 में भारत सरकार ने 1952 में लुप्त हुई शेरभेड़ की वापसी के लिए एक महत्त्वाकांक्षी योजना शुरू की। 2022 में नामिबिया से 8 शेरभेड़ें कूनो में छोड़ने के बाद, 2023 में दक्षिण अफ्रीका से अतिरिक्त 12 शेरभेड़ें आयीं। इस क्रम में शेरभेड़ें कठोर क्वारंटाइन, रेडियो कॉलर और विशेषज्ञ निगरानी से गुजरती हैं। इन शुरुआती समूहों में से कई शेरभेड़ें दर्दनाक परिस्थितियों – किडनी फेल्योर, त्वचा संक्रमण, अतिउष्णता, या अंतर्विवाद के कारण मरीं। इस आरंभिक चरण में कुल 18 शेरभेड़ें (9 वयस्क एवं 9 नवजात) की मृत्यु हुई, जिससे वन्यजीव वैज्ञानिकों और पर्यावरणवादी समूहों में तीखा बहस छिड़ गया।

इन चुनौतियों के बावजूद, कूनो में शेरभेड़ें शिकार करने और घास के मैदान में अपनी जगह बनाने की कई सफल झलकियाँ देखी गईं। राष्ट्रीय उद्यान के अधीक्षक और वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) के यदवन्तरेड ज्वाल ने बताया कि रेडियो कॉलर से मिलने वाले डेटा ने यह दिखाया कि शेरभेड़ें बड़े तौर पर छात्रों‑ट्रैक्टरी इलाकों में घूम रही हैं, जिससे उनके प्रवास पैटर्न की समझ बेहतर हुई।

नई संभावनाएँ, स्रोत देश और चुनौतियाँ

अब केंद्र ने केन्या, बोत्सवाना और नामिबिया के साथ विस्तृत वार्ता शुरू कर दी है। प्रत्येक देश से 8‑10 शेरभेड़ों के समूह भेजे जाने का अनुमान है। इस योजना के तहत:

  • नामिबिया या बोत्सवाना से पहला समूह दिसंबर 2025 तक भारत पहुँचना चाहिए।
  • केन्या से संभावित समूह 2026 में भारत में उतरेगा, जिससे जीन विविधता में महत्वपूर्ण इजाफा होगा।
  • प्रत्येक समूह को 30‑45 दिन की क्वारंटाइन, स्वास्थ्य जांच और ट्रैकिंग डिवाइस से लैस किया जाएगा।
  • देशीय विशेषज्ञों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की संयुक्त निगरानी द्वारा बायो‑सुरक्षा मानकों को सख्ती से लागू किया जाएगा।

केंद्र ने पहले ही स्रोत देशों के व्यापक सूची तैयार कर ली थी, जिसमें केन्या, बोत्सवाना, तंज़ानिया, संयुक्त अरब अमीरात आदि शामिल थे। केन्या को मुख्य कारणों में से एक उसके बड़े शेरभेड़ अभयारण्य और स्वस्थ जनसंख्या माना गया है। यदि केन्या से शेरभेड़ें आयें तो भारत की शेरभेड़ आबादी में पूर्वज जीन का नया मिश्रण जुड़ सकेगा, जिससे रोग प्रतिरक्षा और अनुकूलन क्षमता में सुधार की संभावना है।

दूसरी ओर, दक्षिण अफ्रीका ने अपने शेरभेड़ निर्यात नीति पर पुनर्विचार करने की घोषणा की है। पर्यावरण मंत्री डियोन जॉर्ज ने कहा कि सभी वैज्ञानिक डेटा का पुनः विश्लेषण किया जाएगा, यह देखना होगा कि क्या मौजूदा प्रोजेक्ट में कमी या सुधार की जरूरत है। इस निर्णय का प्रभाव भारत के भविष्य के आयात चरणों पर भी पड़ेगा, क्योंकि दक्षिण अफ्रीका अभी तक प्रमुख स्रोत रहा है।

विवाद का एक बड़ा पहलू स्थानीय समुदायों की सहभागिता है। कई ग्रामों ने कूनो के आसपास के बाड़ों और भूमि उपयोग को लेकर आकलन किया है। सरकार ने जलवायु अनुकूलन, जल स्रोत प्रबंधन और स्थानीय पशुपालन को प्रभावित न करने के लिए नीतियों का मसौदा तैयार किया है। इस दिशा में, वन्यजीव विभाग ने किसानों को रिवार्ड-सिस्टम, बीमा योजना और प्रशिक्षण प्रदान करने का वादा किया है, ताकि शेरभेड़ें और मानव दोनों सुरक्षित रहें।

भविष्य में प्रोजेक्ट चीटा के प्रमुख लक्ष्य दो‑तीन बड़े मेटा‑पॉपुलेशन बनाना है—कूनो, सौरव राष्ट्रीय उद्यान और संभवतः राजस्थान के कुछ मरुस्थलीय क्षेत्रों में। इन क्षेत्रों में घास के मैदान, पर्याप्त शिकार उपलब्धता और कम मानव-व्यवधान के आधार पर शेरभेड़ें स्थायी रूप से फल-फूल सकेंगी। अंत में, इस विशाल पुनर्स्थापना योजना को सफल बनाने के लिए निरंतर वैज्ञानिक मॉनिटरिंग, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और स्थानीय समर्थन आवश्यक होगा।

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Sanjana Sharma

द्वारा Sanjana Sharma