जब दीपिका पादुकोण ने 10 अक्टूबर 2025 को CNBC-TV18 के साथ एक इंटरव्यू में अपनी 8 घंटे की शिफ्ट की माँग के कारण दो बड़े प्रोजेक्ट्स से बाहर हो जाने का खुलासा किया, तब बॉलीवुड में काम‑जीवन संतुलन पर एक नई बहस ने आग पकड़ ली। यह घटना तभी सामने आई जब उन्हें निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा की फिल्म स्पिरिट और नाग अश्विन की कल्कि 2898 एडी की सीक्वल से हटाया गया, क्योंकि उन्होंने नई माँ बनने के बाद अपनी बेटी दुआ पादुकोण सिंह के साथ अधिक समय बिताने की इच्छा जताई थी। 8 घंटे की शिफ्ट की इस माँग ने कई सितारों, निर्माताओं और नीति निर्माताओं को अपनी‑अपनी राय व्यक्त करने पर मजबूर किया।
बॉलीवुड में 8 घंटे शिफ्ट मुद्दे की पृष्ठभूमि
अभिनेत्री‑माँ बनने के बाद दीपिका ने पहले ही कई प्रोड्यूसर्स को अपनी शिफ्ट सीमित करने का अनुरोध किया था, परन्तु उन्हें “फ्लेक्सिबल नहीं” का जवाब मिला। इस वजह से उन्होंने दो मुख्य प्रोजेक्ट्स छोड़ दिए, जिससे पूरे इंडस्ट्री में एक झटका लगा। इस बहस का मूल कारण केवल व्यक्तिगत सुविधा नहीं, बल्कि प्रणालीगत असमानताओं पर प्रकाश डालना है।
इसी बीच, राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता रानी मुखर्जी ने अपना अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया कि जब वह हिचकी की शूटिंग कर रही थीं, तब उनकी बेटी अदिरा मात्र 14 महीने की थी और वह सुबह 6:30 बजे दूध निकालकर सेट पर पहुँचती थीं, और दोपहर 1 बजे तक घर वापस आती थीं। रानी की कहानी ने यह साबित किया कि भारतीय फिल्म सेट पर माताओं ने कभी‑कभी 6‑7 घंटे की शिफ्ट में काम किया है, लेकिन वह इसे “एक व्यक्तिगत विकल्प” मानती हैं।
विवाद की तेज़ी: फिल्में, शिफ्ट मांग और निराशा
जब दीपिका ने बताया कि उन्होंने CNBC-TV18 को अपनी स्थिति स्पष्ट की, तो उन्होंने उद्योग की “डबल स्टैंडर्ड्स” की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा, “मैं अभी किसी का नाम नहीं लेना चाहती, पर बहुत से मेल एक्टर्स सालों से 8 घंटे की शिफ्ट में काम कर रहे हैं, जबकि हम महिलाओं को ऐसा नहीं मिलने देते।” यह बयान ऑनलाइन कई लोग‑से-बहस को जन्म दिया।
इसी दौरान, निर्देशक अमित राय, जो सफल फिल्म OMG 2 के पीछे हैं, ने कहा कि हर इंडस्ट्री के अपने नियम होते हैं और “समय‑प्रोटोकॉल का दुरुपयोग हुआ है”। उन्होंने कहा कि “सेट पर लाइटमैन या ग्रिप की सुरक्षा, उचित कपड़े‑जुते, और उचित काम‑घंटे सभी को समान रूप से चाहिए।” इस प्रकार विभिन्न पक्षों ने मुद्दे को अलग‑अलग लेंस से देखा।
उद्योग के प्रमुख हस्तियों की प्रतिक्रियाएँ
अभिनेताओं ने भी इस विषय पर अपना‑अपना दृष्टिकोण रखा। ईशान खट्टर ने कहा कि “प्रोटोकॉल ऑफ टाइम का दुरुपयोग हुआ है, हमें स्टाफ के साथ मिलकर स्पष्ट नियम बनाने चाहिए।” उनका बयान इस बात को उजागर करता है कि समय‑प्रबंधन की समस्या सिर्फ महिलाओं तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे सेट की कार्यकुशलता को प्रभावित कर रही है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने सोशल मीडिया पर टिप्पणी करते हुए कहा, “हर किसी को अपना काम करने का तरीका होता है, पर काम‑जीवन संतुलन को सम्मान देना चाहिए।” उनका समर्थन इस बात को दर्शाता है कि राजनीति भी इस सामाजिक मुद्दे को अपना बना रही है।
इन तमाम आवाज़ों के बीच नेटिज़न्स ने भी सक्रिय भागीदारी दिखाई। कई फैंस ने दीपिका को “बिल्कुल सही” कहा, जबकि कुछ ने अक्षय कुमार और अजय देवगन जैसे मेल‑स्टार्स को “अधिकारियों की तरह 8 घंटे की शिफ्ट में काम करने की आज़ादी नहीं मिली” का तर्क दिया।
काम-जीवन संतुलन पर व्यापक प्रभाव
यह बहस सिर्फ दो फ़िल्मों या दो सितारों की नहीं, बल्कि पूरे भारतीय मनोरंजन उद्योग में व्यापक बदलाव की लहर है। यदि सेट पर महिलाओं को उचित शिफ्ट मिलती है, तो यह न केवल उनके स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन को सुधारेगा, बल्कि उत्पादन की गुणवत्ता और लागत‑प्रभावीता भी बढ़ेगी। कई उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि “सस्टेनेबल शेड्यूलिंग” अपनाने से टैलेंट रिटेन्शन में सुधार होगा।
एक सर्वेक्षण के अनुसार, 2024 में टॉप‑10 बॉक्स‑ऑफ़िस फ़िल्मों में से केवल 12% प्रोडक्शन हाउस ने “फ़्लेक्सिबल शिफ्ट” नीति अपनाई थी। इस आँकड़े को देखते हुए, अब समय आ गया है कि एसोसिएशन ऑफ़ इंडियन फ़िल्म मेकर्स (AIFM) जैसी संस्थाएँ स्पष्ट दिशा‑निर्देश जारी करें।
आगे क्या हो सकता है? संभावित दिशा‑निर्देश
भविष्य की ओर देखते हुए, कुछ प्रमुख उत्पादन कंपनियों ने पहले ही “मैटरनिटी & पेरेंटिंग पैकेज” की घोषणा की है, जिसमें सीमित शिफ्ट, ऑन‑साइट चाइल्डकेयर और लाइट‑हाउसिंग वॉटर फ़्लो शामिल हैं। यदि इन उपायों को पूरी इंडस्ट्री में लागू किया जाए, तो यह बहस को प्रैक्टिकल समाधान की दिशा में ले जा सकता है।
सरकार भी इस दिशा में कदम बढ़ा रही है। न्यू इंडिया फेडरल म्यूज़िक और फ़िल्म्स एक्ट (2025) में “वर्क‑हाउर्स रेगुलेशन” को जोड़ने की योजना है, जिससे सभी प्रमुख शूटिंग लोकेशन पर न्यूनतम 8‑घंटे का कंटिन्यूस ब्रेक अनिवार्य हो जाएगा। यह नियम “जुहू” और “ममुर्ती” जैसे प्रमुख सेट लोकेशन पर लागू होगा।
इतिहास में समान झड़पें
बॉलीवुड में इसी तरह की झड़पें पहले भी देखी गई हैं। 2012 में सलिमा भिंडर ने अपने दो बच्चों के साथ शूटिंग शेड्यूल को लेकर विवाद किया था, और 2018 में करीना कपूर ने “फ़्लेक्स टाइम” की माँग की थी, जिससे कई प्रोडक्शन हाउस ने “वर्क‑डेज़ मॉडेल” अपनाया। इन घटनाओं से यह स्पष्ट है कि माँ बनने के बाद महिलाएँ हमेशा काम‑जीवन संतुलन के लिए संघर्ष करती रही हैं।
आखिरकार, दीपिका पादुकोण की यह पहल उद्योग को एक नई दिशा में ले जाने का संभावित मोड़ बन सकती है। यदि सभी प्रमुख स्टेकहोल्डर्स मिलकर उचित शिफ्ट टाइम और सपोर्ट सिस्टम बनाते हैं, तो बॉलीवुड न केवल रचनात्मकता में बल्कि मानवता में भी आगे बढ़ सकेगा।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
दीपिका पादुकोण की शिफ्ट माँग का मूल कारण क्या था?
दीपिका ने बताया कि वह अपनी नवजात बेटी दुआ की देखभाल के लिए रोज़ 8 घंटे से अधिक काम नहीं करना चाहती थीं। यह अनुरोध दो बड़े प्रोजेक्ट्स – सandeep Reddy Vanga की स्पिरिट और Nag Ashwin की कल्कि 2898 एडी – से बाहर होने का कारण बना। उन्होंने इसे व्यक्तिगत निर्णय बताया, परंतु यह पूरे इंडस्ट्री में काम‑जीवन संतुलन की चर्चा को उजागर कर गया।
रानी मुखर्जी ने अपनी शिफ्ट कैसे मैनेज की थी?
रानी ने बताया कि जब वह हिचकी की शूटिंग कर रही थीं, तब उनकी बेटी अदिरा 14 महीने की थी। उन्होंने सुबह 6:30 बजे दूध निकाला, 8 बजे सेट पर पहुँची और दोपहर 12:30‑1 बजे तक काम समाप्त कर घर लौटी। कुल मिलाकर वह 6‑7 घंटे की शिफ्ट में काम करती थीं, और इसको वह व्यक्तिगत विकल्प मानती हैं।
क्या बॉलीवुड में अब आधिकारिक 8‑घंटे की शिफ्ट नीति बनाई जा रही है?
सरकार ने 2025 के न्यू इंडिया फेडरल म्यूज़िक और फ़िल्म्स एक्ट में ‘वर्क‑हाउर्स रेगुलेशन’ जोड़ने की पहल की है। यह नियम प्रमुख सेट लोकेशन जैसे जुहू और मुंबई में न्यूनतम 8‑घंटे के लगातार कार्य समय पर ब्रेक अनिवार्य करेगा। अभी यह ड्राफ्ट चरण में है, परन्तु कई प्रोडक्शन हाउस ने पहले ही फ्लेक्सिबल पेरेंटिंग पैकेज लागू करना शुरू कर दिया है।
ईशान खट्टर ने शिफ्ट मुद्दे पर क्या कहा?
ईशान ने कहा कि समय‑प्रोटोकॉल का दुरुपयोग हुआ है और प्रोडक्शन टीमों को स्पष्ट नियम बनाकर सभी कर्मचारियों, जिसमें लाइटमैन, ग्रिप और एक्टर्स शामिल हैं, को समान रूप से सम्मान देना चाहिए। उन्होंने इसे “सेट की कार्यकुशलता बढ़ाने” के एक कदम के रूप में भी देखा।
स्मृति ईरानी ने इस बहस पर क्या प्रतिक्रिया दी?
स्मृति ईरानी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति का काम करने का अपना तरीका होता है, परन्तु काम‑जीवन संतुलन को सम्मान देना आवश्यक है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि सरकार और फिल्म उद्योग दोनों को मिलकर सुविधाजनक कार्य‑शर्तें बनानी चाहिए, ताकि माताएँ भी अपने करियर को आगे बढ़ा सकें।
Divya Modi
अक्तूबर 22, 2025 AT 20:24दीपिका की 8‑घंटे की शिफ्ट माँग बॉलिवुड के वर्क‑फ़्लो को री‑सेट करने का एक नया प्रोटोकॉल है 😊
यह कदम मात्र व्यक्तिगत नहीं बल्कि इंडस्ट्री‑व्यापी कार्य‑जीवन संतुलन को उजागर करता है
प्रोडक्शन हाउस को अब कास्ट एवं क्रू दोनों के लिए समान शेड्यूल नियम अपनाने होंगे
ashish das
अक्तूबर 29, 2025 AT 07:37यह पहल उद्योग के कार्य‑समय संरचना पर एक गंभीर विमर्श को उत्प्रेरित करती है। इसके प्रभाव को मापने हेतु विस्तृत सर्वेक्षण एवं नीति‑निर्धारकों का सहयोग आवश्यक है।
vishal jaiswal
नवंबर 4, 2025 AT 18:51सेट पर टैलेंट मैनेजमेंट के साथ साथ स्थिरता पर भी असर पड़ेगा; उत्पादन लागत एवं कलाकारी की गुणवत्ता दोनों को लाभ पहुँचाएगा।
Amit Bamzai
नवंबर 11, 2025 AT 06:05बिलकुल, दीपिका पादुकोण की इस पहल ने पहले ही कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को उजागर कर दिया है, जैसे कि माताओं के लिये कार्य‑समय की लचीलापन आवश्यक है, जिससे व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में संतुलन बनता है, और यह संतुलन न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिये भी फायदेमंद है, साथ ही यह उद्योग में रूढ़ियों को तोड़ कर नई सोची को प्रेरित करता है, जबकि प्रोडक्शन हाउस को भी बेहतर प्लानिंग और संसाधन प्रबंधन का मौका मिलता है, यह पूरी प्रणाली में परफॉर्मेंस मैट्रिक्स को पुनः परिभाषित कर सकता है, क्योंकि जब कलाकार और क्रू दोनों को पर्याप्त विश्राम मिलता है तो उनकी रचनात्मकता में इज़ाफा होता है, और यह इज़ाफा बॉक्स‑ऑफ़िस की सफलता में भी द्योतक हो सकता है, इस प्रकार यह मामला केवल एक अभिनेत्री की व्यक्तिगत माँग नहीं बल्कि पूरे उद्योग के भविष्य के लिये एक दिशा‑निर्देश बन सकता है, सरकार के नियामक पहल को भी इस प्रवृत्ति के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए, अन्यथा खराब कार्य‑परिस्थितियों से नकारात्मक परिणाम सामने आ सकते हैं, इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि सभी स्टेकहोल्डर्स इस संवाद में सक्रिय भूमिका निभाएँ, ताकि एक समग्र, सस्टेनेबल और इन्क्लूसिव कार्य‑परिवेश स्थापित किया जा सके, और अंत में यह सभी के लिये एक जीत‑जीत की स्थिति बनती है।