गोवर्धन पूजा हिंदू धार्मिक परम्पराओं में एक विशिष्ट स्थान रखती है। इसके पौराणिक महत्व की जड़ें भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं में समाई हुई हैं। जब भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव के अहंकार को चुनौती दी और गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा कर वृजवासियों को वर्षा से बचाया, तब से इस दिन की महत्ता और अधिक बढ़ गई। यह उत्सव केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति मानव कृतज्ञता और यही धरती हमारी माता है, का सजीव उदाहरण है।
गोवर्धन पूजा हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को मनाई जाती है। 2024 में, यह पर्व 2 नवंबर को मनाया जाएगा। पूजा का शुभ मुहूर्त 1 नवंबर को शाम 6:16 बजे से शुरू होकर 2 नवंबर को रात 8:21 बजे तक रहेगा। इस दिन लोग अपने घरों के प्रांगण में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाते हैं और उसकी विधिपूर्वक पूजा करते हैं। यह पूजा अन्नकूट या अन्नदान के रूप में भी प्रसिद्ध है, जिसमें 56 तरह के भोग अर्थात् छप्पन भोग राजा भगवान् को अर्पित किए जाते हैं।
गोवर्धन पूजा के पीछे छिपी पौराणिक कथाएं कई प्रकार से हमें नैतिक और धार्मिक शिक्षा देती हैं। मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठा कर ब्रजवासियों को उरणी और भारी बारिश से सुरक्षित रखा, तब से इस त्योहार को मनाने की परंपरा चली आ रही है। इसका उद्देश्य इंद्र के घमंड को समाप्त करना और गौ संरक्षण का संदेश लोगों तक पहुँचाना था। इस पर्व को मनाते समय लोग इस तथ्य को नहीं भूलते कि भगवान श्रीकृष्ण का संदेश मानवता और वातावरण के प्रति सजग रहने का था।
यह दिन भक्ति और सादगी का जीता जागता प्रमाण है। गायों के गोबर से बनाए गए गोवर्धन के प्रतिरूप की पूजा की जाती है। इस पूजा के दौरान लोग हल्दी, चावल, दही, फूल, और परंपरागत वस्त्रों का उपयोग करते हैं। पूजा के पश्चात समाज में अन्नकूट का आयोजन होता है, जिसे सामुदायिक भोज कहा जाता है। इसमें मित्र, रिश्तेदार, और पास-पड़ोस के लोग शामिल होते हैं। अन्नकूट की अवधि को लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर प्रसाद, मिठाईयां, और कई प्रकार के पकवानों का आदान-प्रदान करते हैं। यह पर्व सामाजिक समरसता और एकजुटता का प्रतीक है।
गोवर्धन पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पर्यावरणीय चेतना का संदेश भी देती है। इस दिन को अनाज और फलों की पूजा का पर्व मनाया जाता है, जो प्रकृति के साथ सामंजस्य को बढ़ावा देता है। लोग इस दिन को पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पण के रूप में देखते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि भूमि को बचाया जाए और धरा को हरियाली से आच्छादित किया जाए।
इस प्रकार, गोवर्धन पूजा एक ऐसा पर्व है जो धार्मिक आस्था के साथ-साथ सामाजिक और पर्यावरणीय चेतना को भी साथ लेकर चलता है। यह पर्व हमें दिखाता है कि कृष्ण भगवान ने हमें ना सिर्फ देवताओं के प्रति श्रद्धा रखने को कहा, बल्कि प्रकृति के प्रति ज़िम्मेदारी को निभाने का रास्ता भी दर्शाया। यह हमें याद दिलाता है कि संसार का हर जीव और के सुरक्षान्त असंख्य लोगों की देन है और इस देन का सम्मान हमारी माफी है।
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