स्वर्ण मंदिर, जिसे हरमंदिर साहिब भी कहा जाता है, विश्वभर के सिखों के लिए अत्यंत पूजनीय स्थल है। हाल ही में, एक विवाद उत्पन्न हुआ जब मशहूर फैशन डिजाइनर और लाइफस्टाइल इंफ्लुएंसर अर्चना मकवाना ने इस पवित्र स्थल पर योगासन किया और उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा की। इस घटना ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) और सिख समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाई।
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर, अर्चना मकवाना ने स्वर्ण मंदिर का दौरा किया और वहां की परिक्रमा पथ पर योगासन किया। उन्होंने इस योगासन की तस्वीरें अपने सोशल मीडिया पर साझा की, जो तुरंत वायरल हो गईं और लोगों के बीच विवाद खड़ा हो गया। एसजीपीसी ने इसे सिख धर्म की 'मर्यादा' के खिलाफ मानते हुए मकवाना के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।
एसजीपीसी के प्रमुख हरजिंदर सिंह धामी ने इस घटना पर कड़ी निंदा करते हुए कहा, "स्वर्ण मंदिर में किसी भी प्रकार की गतिविधि जो सिख धर्म की मर्यादा के विपरीत हो, उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हरमंदिर साहिब सिख धर्म का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है और यहाँ किसी भी प्रकार की धार्मिक आस्था को ठेस पहुँचाना अस्वीकार्य है।"
धामी ने स्पष्ट किया कि इस घटना के कारण एसजीपीसी ने अपने तीन कर्मचारियों को भी निलंबित कर दिया है क्योंकि वे अपनी जिम्मेदारियों का सही ढंग से पालन नहीं कर पाए। उन्होंने यह भी बताया कि पुलिस कमिश्नर को पत्र भेजकर मकवाना के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है।
दरबार साहिब के जनरल मैनेजर भगवंत सिंह ढांगेड़ा ने भी इस घटना पर अपनी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा, "योगासन की तस्वीरों को देखने के बाद सिख समुदाय और 'संगत' की भावनाएं आहत हुई हैं। हमें ऐसे किसी भी कृत्य को सहन नहीं करना चाहिए जो हमारी आस्थाओं को ठेस पहुँचाए।"
आलोचनाओं के बढ़ने के साथ ही मकवाना ने सोशल मीडिया पर माफी मांगी। उन्होंने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर लिखा, "मुझे यह नहीं पता था कि गुरु दरबार साहिब के परिसर में योगासन करना कुछ लोगों के लिए अस्वीकार्य हो सकता है। मेरा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं था और मैं इसके लिए दिल से माफी मांगती हूँ। मैं भविष्य में इससे अधिक सतर्क रहूँगी।"
धार्मिक स्थलों की मर्यादा और आदर का पालन हर किसी का कर्तव्य है। चाहे वह किसी भी धर्म का अनुयायी हो, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे कार्य किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचाएं।
स्वर्ण मंदिर, जो एकता और भक्ति का प्रतीक है, विशेष रूप से सिख समुदाय के लिए सम्मान और भक्ति का स्थान है, जहां हर जाति और धर्म के लोग आते हैं। ऐसे में किसी भी प्रकार की गतिविधि जो धार्मिक आस्थाओं के विपरीत हो, संपूर्ण समुदाय की भावनाओं को आहत कर सकती है।
इस घटना से हमें यह सीखने की आवश्यकता है कि हमें ऐसे पवित्र स्थलों की गरिमा और मर्यादा का हमेशा पालन करना चाहिए। धार्मिक स्थलों पर जाने से पहले वहां के नियमों और परंपराओं की जानकारी प्राप्त करना हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जिम्मेदारी का हिस्सा है।
इस घटना ने एक बार फिर सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनशीलता की अहमियत को उजागर किया है। हमारे समाज में विविधता भरी संस्कृतियाँ और धर्म हैं और हमें उनका आदर करना आना चाहिए।
सांस्कृतिक संवेदनशीलता का मतलब यह होता है कि हमें एक-दूसरे के धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का आदर करना चाहिए। खासकर जब हम ऐसे सार्वजनिक स्थलों पर जाते हैं जो किसी धर्म या समुदाय के लिए पवित्र माने जाते हैं।
अर्चना मकवाना के इस विवाद के बाद हमें यह निश्चित करना चाहिए कि हम अपने सामाजिक क्रियाकलापों में और अधिक सोच-समझ का इस्तेमाल करें। यह जरूरी है कि हम किसी भी धरोहर स्थल या धार्मिक स्थल की मर्यादा का उल्लंघन न करें और वहां के नियमों का पूरा पालन करें।
इस घटना ने सिख समुदाय को गहरे विचारों में डाल दिया है और अन्य धर्मों और समुदायों को भी यह सोचने पर मजबूर किया है कि हमें अपने कार्यों में अधिक सावधानी बरतनी चाहिए।
हजारों आलोचनाओं और विरोध के बाद, अर्चना मकवाना ने सोशल मीडिया पर एक माफी संदेश जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि उनकी कोई भी हरकत जानबूझकर किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं थी। उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता था कि यह किसी के लिए आहत करने वाला हो सकता है और मैं इसके लिए माफी मांगती हूँ। भविष्य में मैं और अधिक सतर्क रहूँगी और सुनिश्चित करूंगी कि मेरे कार्य किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचाएं।"
यह हमारे समाज का दायित्व है कि हम एक-दूसरे की धार्मिक और सांस्कृतिक आस्थाओं का आदर करें और अपनी हरकतों में सतर्कता बरतें।
धार्मिक सौहार्द और आदर का पालन हर व्यक्ति का फर्ज है, और हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे कार्य किसी भी धर्म या समु� (समुदाय के लिए अपमानजनक न हों। चाहे वह किसी युग की ट्रेंडिंग गतिविधि हो या व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति, हमें दूसरों की धार्मिक भावनाओं का आदर करते हुए अपने काम करने चाहिए।)
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