इंग्लैंड-भारत टेस्ट सीरीज में पाटौदी ट्रॉफी के संन्यास की तैयारी

इंग्लैंड-भारत टेस्ट सीरीज में पाटौदी ट्रॉफी के संन्यास की तैयारी

पाटौदी ट्रॉफी का इतिहास और विरासत

पाटौदी ट्रॉफी भारतीय क्रिकेट के गौरवशाली इतिहास का एक हिस्सा है। 2007 में इस ट्रॉफी की शुरुआत हुई थी ताकि 1932 में भारत और इंग्लैंड के बीच पहले टेस्ट मैच की 75वीं वर्षगांठ का जश्न मनाया जा सके। इसे मंसूर अली खान पाटौदी, जिन्हें प्यार से 'टाइगर पाटौदी' कहा जाता था, और उनके पिता इफ्तिखार अली खान पाटौदी की क्रिकेट विरासत को सम्मानित करने के लिए पेश किया गया था।

यह ट्रॉफी उन असंख्य यादों का संग्रह है जो इन महान खिलाड़ियों ने क्रिकेट प्रेमियों के मन में छोड़ी हैं। मंसूर अली खान ने भारत की कप्तानी की थी, जबकि उनके पिता दोनों देशों, भारत और इंग्लैंड के नेतृत्वकर्ता रहे थे।

संन्यास के फैसले पर प्रतिक्रियाएं

संन्यास के फैसले पर प्रतिक्रियाएं

इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ECB) के इस निर्णय ने मिश्रित प्रतिक्रियाएं उत्पन्न की हैं। टाइगर पाटौदी की विधवा शर्मिला टैगोर ने इस निर्णय पर निराशा जताई है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय भारतीय क्रिकेट बोर्ड (BCCI) पर निर्भर करता है कि वे टाइगर की विरासत को याद करना चाहते हैं या नहीं।

इस ट्रॉफी के संन्यास के पीछे कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया है, लेकिन कुछ स्रोतों का कहना है कि कभी-कभी ट्रॉफियों को एक अवधि के बाद संन्यास किया जाता है। यह वैसा ही है जैसे वेस्ट इंडीज और इंग्लैंड के बीच विज़डन ट्रॉफी का नाम बदलकर रिचर्ड्स-बोथम ट्रॉफी कर दिया गया था। कुछ अटकलें लगाई जा रही हैं कि इसे आधुनिक क्रिकेट के दिग्गजों जैसे कपिल देव और इयान बोथम के सम्मान में नया नाम दिया जा सकता है।

हालांकि, एंथनी डी मेलो ट्रॉफी, जिसे भारत के घरेलु मुकाबलों में इंग्लैंड के खिलाफ खेला जाता है, इस प्रक्रिया से अप्रभावित रहेगी। यह दर्शाता है कि पाटौदी ट्रॉफी के भविष्य को लेकर अभी बहुत सी बातें साफ नहीं हैं।

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