मुद्रास्फीति क्या है? RBI, कीमतें और आम आदमी पर इसका असर
जब आप दूध, चीनी या बेंजिन की कीमत पिछले साल के मुकाबले ज्यादा देखते हैं, तो वो चीज़ जो आपकी जेब को खाली कर रही होती है, वो है मुद्रास्फीति, एक ऐसी आर्थिक स्थिति जिसमें सामान और सेवाओं की कीमतें लगातार बढ़ती हैं, जिससे आपके पैसे की खरीद शक्ति कम हो जाती है. ये बस एक आंकड़ा नहीं, बल्कि आपके दिनभर के खर्चों को बदल देता है। जब मुद्रास्फीति 3.1% रहती है, तो आपको लगता है कि सब कुछ थोड़ा महंगा हो गया। लेकिन जब ये 6% हो जाए, तो आपकी बचत का एक टुकड़ा बिना कुछ खरीदे ही गायब हो जाता है।
RBI, भारत का केंद्रीय बैंक जो नकदी की आपूर्ति और ब्याज दरों को नियंत्रित करता है इसकी निगरानी करता है। जब मुद्रास्फीति बढ़ती है, तो RBI रेपो दर, वह दर जिस पर बैंक RBI से उधार लेते हैं बढ़ाता है, ताकि लोग कम उधार लें और खर्च कम करें। 1 अक्टूबर 2025 को RBI ने रेपो दर 5.5% पर स्थिर रखी — ये फैसला न सिर्फ बैंकों के लिए बल्कि आपके एमआईएल और कार के लोन के लिए भी मायने रखता है। इसके अलावा, जीएसटी सुधार, वह बदलाव जो वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाले कर को आसान और पारदर्शी बनाता है भी मुद्रास्फीति को प्रभावित करता है। अगर किसी चीज़ पर टैक्स बढ़ जाए, तो उसकी कीमत भी बढ़ जाती है।
ये सब आपके दिनचर्या से जुड़ा है। जब सिल्वर ₹150/ग्राम तक पहुँच गया, तो शादियों में गहने खरीदने वालों को बड़ा झटका लगा। जब महिंद्रा ने बॉलरो की कीमतें ₹8.49 लाख से शुरू कीं, तो लोगों ने सोचा — क्या अब कार खरीदना भी मुश्किल हो गया? ये सब एक ही बात के अलग-अलग पहलू हैं: मुद्रास्फीति। यहाँ आपको ऐसी ही ताज़ा खबरें मिलेंगी — जहाँ RBI का फैसला, बाजार की भावना, या फिर किसी नए उत्पाद की कीमत आपके जीवन को कैसे छू रही है, वो समझाया गया है।
RBI ने अगस्त 2025 में रेपो रेट 5.5% पर स्थिर रखी, अमेरिकी टैरिफ पर चिंता कायम
भारतीय रिजर्व बैंक ने अगस्त 2025 की मौद्रिक नीति बैठक में रेपो रेट 5.5% पर स्थिर रखी। महंगाई दर में कमी और अमेरिकी टैरिफ जैसे जोखिमों के चलते यह फैसला लिया गया। अर्थव्यवस्था के स्थिर विकास और मांग में सुधार को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय बैंक ने तटस्थ रुख रखा।
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बैंक ऑफ इंग्लैंड ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की, 2008 के बाद सबसे ऊंचा स्तर
बैंक ऑफ इंग्लैंड ने ब्याज दरों में 0.25 प्रतिशत की वृद्धि की है, जिससे यह 1.75% हो गई है, जो 2008 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर है। इस निर्णय का उद्देश्य बढ़ती मुद्रास्फीति से निपटना है, जिसका अनुमान है कि यह आने वाले महीनों में 13% से अधिक हो जाएगी।
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