मंकीपॉक्स क्या है? लक्षण, फैलाव और भारत में अपडेट्स

मंकीपॉक्स एक मंकीपॉक्स, एक वायरल संक्रमण जो जानवरों से इंसानों में फैलता है और त्वचा पर छाले और बुखार का कारण बनता है. इसे प्रायः बंदर वायरस भी कहा जाता है, लेकिन यह सिर्फ बंदरों तक सीमित नहीं है — यह चूहों, खरगोशों और अन्य छोटे जानवरों से भी इंसानों में आ सकता है। यह वायरस पहले अफ्रीका में पाया गया था, लेकिन 2022 के बाद से दुनिया भर में मामले बढ़े। भारत में भी कई मामले सामने आए, लेकिन सरकार और स्वास्थ्य विभाग ने इसे नियंत्रित रखा।

मंकीपॉक्स के लक्षण, बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, थकान और त्वचा पर छाले या चकत्ते. ये छाले आमतौर पर चेहरे, हाथों और तलवों पर दिखते हैं और कुछ हफ्तों में भर जाते हैं। यह बीमारी आमतौर पर हल्की होती है और ज्यादातर लोग घर पर आराम करके ठीक हो जाते हैं। लेकिन बच्चे, बुजुर्ग और कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों के लिए यह खतरनाक हो सकता है। इसका फैलाव संपर्क से, खासकर त्वचा के छालों, लार या सांस के बूंदों के माध्यम से. इसलिए बीमार लोगों से दूर रहना और हाथ धोना बहुत जरूरी है

भारत में अभी तक कोई बड़ी लहर नहीं आई है, लेकिन स्वास्थ्य अधिकारी लगातार निगरानी कर रहे हैं। कुछ राज्यों में अस्पतालों में विशेष वार्ड बनाए गए हैं, और जांच के लिए टेस्टिंग किट उपलब्ध हैं। अगर आपको अचानक बुखार और छाले दिखें, तो डॉक्टर से जरूर मिलें। टीका भी उपलब्ध है, लेकिन यह सिर्फ उन लोगों के लिए है जो जोखिम में हैं — जैसे हेल्थकेयर वर्कर्स या जिन्होंने मंकीपॉक्स के संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आया है।

इस पेज पर आपको मंकीपॉक्स से जुड़े अपडेट्स, लक्षणों के बारे में स्पष्ट जानकारी, और भारत में इसके मामलों की रिपोर्ट्स मिलेंगी। कुछ खबरें बताती हैं कि किन शहरों में मामले आए हैं, किन लोगों को टीका लगाया गया, और स्वास्थ्य विभाग ने क्या निर्देश जारी किए हैं। ये सब आपको बचाव के लिए सही जानकारी देने के लिए है — न कि डराने के लिए।

इबोला, COVID और संघर्ष के बाद MPox से मुकाबला कर रहे डीआरसी के चिकित्सा कर्मी
19 अगस्त 2024 Sanjana Sharma

इबोला, COVID और संघर्ष के बाद MPox से मुकाबला कर रहे डीआरसी के चिकित्सा कर्मी

डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (डीआरसी) में स्वास्थ्य कर्मियों को MPox (मंकीपॉक्स) की नवीनतम महामारी के साथ ही इबोला, COVID-19 और चल रहे संघर्षों का सामना करना पड़ रहा है। डीआरसी के चिकित्सा कर्मियों की दृढ़ता और संसाधनों की कमी के बावजूद उनके प्रयासों पर प्रकाश डाला गया है।

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